मुझे नहीं पता, मैं कैसा लिखता हूँ? अच्छा लिखता हूँ या बुरा लिखता हूँ! खरा लिखता हूँ या खोटा लिखता हूँ! मुझे नहीं पता, मैं कैसा लिखता हूँ? मगर जो भी लिखता हूँ!! मगर जो भी लिखता हूँ!! हक़ीक़ते जिंदगी लिखता हूँ!!! मुझे नहीं पता, मैं कैसा लिखता हूँ?
शनिवार, 31 जुलाई 2021
रब-ए-अनबन
शुक्रवार, 30 जुलाई 2021
प्रभात-ए-सुकून
हक़ीक़त-ए-क़ायनात
फिजायें बदल रही हैं!
घटायें उमड़ रही हैं!
हो रहा है परिवर्तन!!
देखो! इंसान डरे डरे से!
और जानवर बेफिक्र घूम रहे हैं!!
यह प्रकोप नहीं!
हमारी करनी का फल है!
प्रकृति को लूटा है जितना!
आज उतना ही लुट रहे हैं!!
मगर इंसान तो इंसान हैं!
सुधरते कहाँ हैं!
मरते मरते भी एक दूजे की!
खाल उतार रहे हैं!!
आज रो रहा है इंसान!
और प्रकृति मुस्कुरा रही है!!
फिजायें बदल रही हैं!
घटायें उमड़ रही हैं!!!
सफ़र-ए-जिंदगी
शिक्षक
तोड़ के भ्रम सारे!
जो आईना दिखाता।
एक ही पैमाने से!
जो सबको है तौलता।
जात-पात, ऊँच-नीच!
धर्मों के लगाव से उठकर ऊपर!
जो सबको है सिखाता।
एक ऐसी सड़क जो!
मंजिल तक पहुँचाता।
भटके हुओं को!
जो राह दिखाता।
अँधेरे में रोशनी की!
किरण जो बन जाता।
ज्ञान के रूप में!
जो विश्वास है भरता।
दूसरों की प्रगति में अपनी!
सफलता ढूँढ़ लेता।
एक ही है वो शख़्स!
ये जमाना जिसे!
शिक्षक है कहता।
मज़ाक़-ए-मुस्कुराहट
मज़ाक करने से
मज़ाक बनते नहीं
यह तो सोच-ए-हकीकत है!!
मुस्कुराहट बिखेरना
किसी के होठों पे
ख़ुदा-ए-बरकत है!!
मग़र रखना ख़याल
कि मज़ाक़.........!
मज़ाक़-ए-सीमा तक हो!!
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मजखाली के झोड़े धूणी (मंदिर) में.....
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ख़ामोशी को सुन ले जो! वो शख्स हो तुम!! रेशम की डोर सी बँधे हो! मेरे हाथों की नब्ज़ हो तुम!! तौफा क्या दें तुम्हें! खुद इक तौफा हो तुम!! इसलिए...