शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

हक़ीक़त-ए-क़ायनात

फिजायें बदल रही हैं!

घटायें उमड़ रही हैं!

हो रहा है परिवर्तन!!

देखो! इंसान डरे डरे से!

और जानवर बेफिक्र घूम रहे हैं!!


यह प्रकोप नहीं!

हमारी करनी का फल है!

प्रकृति को लूटा है जितना!

आज उतना ही लुट रहे हैं!!


मगर इंसान तो इंसान हैं!

सुधरते कहाँ हैं!

मरते मरते भी एक दूजे की!

खाल उतार रहे हैं!!


आज रो रहा है इंसान!

और प्रकृति मुस्कुरा रही है!!

फिजायें बदल रही हैं!

घटायें उमड़ रही हैं!!!

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