हरा-भरा त्यौहार है
यह फूल-देई
प्रकृति का श्रृंगार है!!
अर्थ को इसके
धरातल पर उतारना
इसे केवल मनाना मत
हृदय से संभालना
जो उतरा यह श्रृंगार
तो समझो जीवन बेकार है!!
हरा-भरा त्यौहार है
यह फूल-देई
प्रकृति का श्रृंगार है!!
मुझे नहीं पता, मैं कैसा लिखता हूँ? अच्छा लिखता हूँ या बुरा लिखता हूँ! खरा लिखता हूँ या खोटा लिखता हूँ! मुझे नहीं पता, मैं कैसा लिखता हूँ? मगर जो भी लिखता हूँ!! मगर जो भी लिखता हूँ!! हक़ीक़ते जिंदगी लिखता हूँ!!! मुझे नहीं पता, मैं कैसा लिखता हूँ?
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