आज हम स्वतन्त्र हैं, मगर स्वतंत्रता की भी एक सीमा होती है। आपकी स्वतंत्रता वहीं तक सीमित है जब तक आपकी स्वतन्त्रता से किसी दूसरे को कोई समस्या न हो, कोई दूसरा आपकी स्वतन्त्रता से प्रभावित न होता हो।
स्वतंत्रता का यह मतलब नहीं है कि आप किसी के ऊपर थूक सकते हो, किसी के ऊपर पत्थर बरसा सकते हो, किसी को भी सार्वजनिक जगह पर अपमानित कर सकते हो या चोरी कर सकते हो या कानून तोड़ सकते हो या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकते हो, या सार्वजनिक रास्तों को अवरूद्ध कर सकते हो, जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे सभी लोग अपराधी हैं और उन्हें सख्त से सख्त सज़ा मिलनी ही चाहिए।
अब कुछ लोग उनके समर्थन में यह भी कहेंगे की ये सब काम उन्होंने मजबूरी में किये, उन्हें भड़काया गया, अज्ञानता वश उन्होंने ऐसा किया, तो उन सभी से यही कहना चाहूँगा कि कोई भी व्यकि चाहे मजबूरी में, चाहे अज्ञानता वश, चाहे भड़काने से, चाहे जानबूझकर, ऐसा कोई भी काम करता है जिससे दूसरों को नुकसान हो तो वह अपराधी की श्रेणी में ही आता है।
अपराध अपराध होता है यह मायने नहीं रखता की वह किस स्थिति में किया गया था, क्योंकि हम सभी मनुष्य हैं और हर मनुष्य के जीवन में कोई न कोई मजबूरी होती है, अज्ञानता भी होती है, हर किसी पर किसी न किसी का प्रभाव भी होता ही है। अरे! हम तो वे मनुष्य हैं जो अनजाने, सुसुप्त अवस्था में किये अपराध की सजा भी भोगते हैं और कुछ लोग तो जागृत अवस्था में ऐसे अपराध कर रहे हैं।
अतः ऐसे सभी लोग जो इस तरीके के कृत्य कर रहे हैं वे सभी दण्डनीय अपराधी हैं, मगर ज़ाहिल नहीं हैं क्योंकि ज़ाहिल तो वे पढ़े लिखे लोग हैं जो इन अपराधों का समर्थन कर रहें हैं, ज़ाहिल तो वे लोग हैं जो खुद का बुद्धिजीवी होने का भ्रम पाले हुए हैं, जो सच को सच और गलत को गलत कहने में भी अपना लाभ और हानि देख रहे हैं व ऐसे कृत्यों को बढ़ावा दे रहे हैं।
यदि इन्हें पढ़ा लिखा ज़ाहिल भी कहा जाय तो कोई अतिसंयोक्ति न होगी।
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