मुझे नहीं पता,
मैं कैसा लिखता हूँ?
अच्छा लिखता हूँ
या बुरा लिखता हूँ!
खरा लिखता हूँ
या खोटा लिखता हूँ!
मुझे नहीं पता,
मैं कैसा लिखता हूँ?
मगर जो भी लिखता हूँ!!
मगर जो भी लिखता हूँ!!
हक़ीक़ते जिंदगी लिखता हूँ!!!
मुझे नहीं पता,
मैं कैसा लिखता हूँ?
भावभीनी! कलम चली आज युवाओं की मौत पर! दे गए जो सीख वो! लिख दिए मैंने! अश्रु छुपाकर!
भाग दौड़ की, जिंदगी में, थोड़ा सा, ठहराव चाहिए,
युवा हो रहे, गुमराह क्यों? ढूँढना इसका, जवाब चाहिए,
भाग दौड़ की, जिंदगी में, थोड़ा सा, ठहराव चाहिए,
सफलता के, मुक़ाम पर, असफलता का, तनाव क्यों? भीतर से, परेशान हैं, तो दिखावटी, मुस्कान क्यों? सच्चे जज्बातों को, करना बँया चाहिए,
भाग दौड़ की, जिंदगी में, थोड़ा सा, ठहराव चाहिए,
कितना आगे, भागोगे? कितना ऊपर, जाओगे? क्षण भंगुर है, सब कुछ, इक दिन, जमीं पर ही आओगे, इसलिये चले थे, कहाँ से? कभी उन राहों को, मुड़कर भी, देख लेना चाहिए,
भाग दौड़ की, जिंदगी में, थोड़ा सा, ठहराव चाहिए,
भौतिकता वादी सुखों को, जो दे दी अहमियत ज़्यादा, उसका असर, दिखाई देता है, सब कुछ पाकर भी, जब लगता है, कुछ पाया नहीं, ऐसी शिक्षा को, संस्कारों का आधार चाहिए,
भाग दौड़ की, जिंदगी में, थोड़ा सा, ठहराव चाहिए,
छोड़ विदेशी सभ्यता, छोड़ अपनी कामुकता, आओ! लौटें फिर, भारत की ओर, भूत, वर्तमान और भविष्य, तीनों का जहाँ मेल था, बच्चे, जवान और बूढ़े, एक दूजे का साथ था, कुनबा था छोटा अपना, पर समस्याओं का, समाधान था, अनुभव की कमी नहीं, वो बूढ़ा अपने साथ था, मर चुकी, उस परम्परा को, जीवन फिर से, आज चाहिए,