मुझे नहीं पता,
मैं कैसा लिखता हूँ?
अच्छा लिखता हूँ
या बुरा लिखता हूँ!
खरा लिखता हूँ
या खोटा लिखता हूँ!
मुझे नहीं पता,
मैं कैसा लिखता हूँ?
मगर जो भी लिखता हूँ!!
मगर जो भी लिखता हूँ!!
हक़ीक़ते जिंदगी लिखता हूँ!!!
मुझे नहीं पता,
मैं कैसा लिखता हूँ?
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गुरुवार, 2 सितंबर 2021
अल्फ़ाज़-ए-रहगुजर
आँखों में बसा के यादों से जमा दिया! सच में तुमने तो रुला दिया!!
घायल कोई अज़नबी ही सही ज़ख्म हो पराया ही सही! मग़र दर्द ने वही सिला दिया!!
कोई गिला नहीं अजी! शिक़वा भी नहीं! जो तुमने मेरे अल्फ़ाज़ किसी और को सुना दिया!!
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