जब दिल की सोच को!
दिमाग से परखने लग जाते हैं!
तो उलझ जाते हैं!!
फिर अपने बेगाने!
कभी बेगाने अपने हो जाते हैं!!
अच्छा तो यह होता कि हम!
दिल की बात दिल में दबा लेते!!
छोटी छोटी गलतियों को कर किनारा!
मन से मन की बातें करते!!
और गुथ जाते कुछ इस तरह से!
जैसे साँसे धड़कनों में गुथ जाते हैं!!
जब दिल की सोच को!
दिमाग से परखने लग जाते हैं!
तो उलझ जाते हैं!!
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