बुधवार, 4 अगस्त 2021

"नारी"

घोर अँधेरी रात में!
रोशनी की किरण है!
तपती हुई रेत में!
छाया का मरहम है!!

दुनियाँ के!
रिवाजों से जूझती!
तूफ़ान में खड़ी चट्टान है!
खुद टूटती बिखरती!
मग़र रिश्तों को संभालती!
एक क़ायनात है!!

एक दिवस नहीं!
हर दिवस उनका ही है!
कभी न लेती अवकाश
इसीलिए अन्नपूर्णा है!!

पहले तो होता था!
मग़र आज भी!
जिनकी महिमा का!
तिरस्कार जारी है!
अर्पण है मेरे!
ये चंद लफ़्ज!
उन सभी को!
जिन्हें कहती यह दुनियाँ!
नारी है!!

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