मुझे नहीं पता, मैं कैसा लिखता हूँ? अच्छा लिखता हूँ या बुरा लिखता हूँ! खरा लिखता हूँ या खोटा लिखता हूँ! मुझे नहीं पता, मैं कैसा लिखता हूँ? मगर जो भी लिखता हूँ!! मगर जो भी लिखता हूँ!! हक़ीक़ते जिंदगी लिखता हूँ!!! मुझे नहीं पता, मैं कैसा लिखता हूँ?
कोई बात नहीं
अग़र खुश न रह सको!
कवि कहता है इतना
मग़र चिंता न किया करो!
हर बारिस के बाद
धूप निकलती है!
हर रात के बाद
दिन निकलता है!
बस इस सच्चाई को
स्वीकार कर लिया करो!
कोई बात नहीं!!
अग़र कुछ न कर सको!!
लम्हा बदलता है हरपल
बस इंतज़ार कर लिया करो!!!!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें