मौसम का फ़साना है!
सर्दी गर्मी संग!
बारिस की बूंदों का!
तराना है!!
कहीं बादलों का फटना!
कहीं पर्वतों का गिरना है!
सरक रही है जमीं कहीं!
कहीं आंसू-ए-नीर बहना है!
यह सब देख जब!
उठती सिहरन!
तो तसव्वुर-ए-ख़याल
का आना है!!
शायद अब समझेंगे!
हम लोग सभी!
कि प्रकृति को अब!
और नहीं छेड़ना है!!
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