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रविवार, 1 अगस्त 2021

शख़्स-ए-दिल्लगी

 ख़ामोशी को सुन ले जो!

वो शख्स हो तुम!!


रेशम की डोर सी बँधे हो!

मेरे हाथों की नब्ज़ हो तुम!!


तौफा क्या दें तुम्हें!

खुद इक तौफा हो तुम!!


इसलिए लिखते हैं एहसास!

जिसका हर एक लफ्ज़ हो तुम!!


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